तक्षशिल पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिंडी जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण प्राचीन शहर है। ये अपने समय में सभी विश्वविद्यालयों का जनक रह चूका है । ये आज के जैसे विश्वविद्यालयों जैसा नहीं था,लेकिन ये कई महान शिक्षकों का घर हुआ करता था।
इतिहास में खो गया तक्षशिला
क्यूंकि
तक्षशिला का बड़ा सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व था, इसलिए कई शासकों ने तक्षशिला पर हमले किए - जिनमें यूनानी, कुषाण और फारसी शामिल थे। आखिरकार, 5 वीं शताब्दी तक, हुना जनजाति ने तक्षशिला को पूरी
तरह से नष्ट कर दिया । इस प्राचीन शहर को 19 वीं शताब्दी में एक पुरातत्वविद सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजा गया ।
नाम में ही सब कुछ है
तक्षशिला
का जिक्र रामायण और महाभारत में भी मिलता है। भगवान राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष
के नाम पर इस का नाम तक्षशिला रखा गया और आगे जाके तक्ष्य के राज्य की राजधानी बना
I
कोई फीस नहीं,कोई परीक्षा नहीं
तक्षशिला में कोई तय पाठ्यक्रम या शिक्षा का तरीका नहीं था। कई महान शिक्षकों ने यहां बड़ी संख्या में छात्रों को पढ़ाया है । तक्षशिला में एक खास बात थी की कोई भी छात्र किसी भी शिक्षक की कक्षा में उपस्थित हो सकता था, जहाँ से वो सीखना चाहता था । और शिक्षक अपनी पसंद के आधार पर छात्रों को पढ़ा सकते थे । किसी भी राजा या शासक ने कभी तक्षशिला के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की।
छात्रों
को कभी भी कोई फीस नहीं देनी पड़ी क्योंकि किसी चीज के बदले में ज्ञान बेचना आम
तौर पर गलत माना जाता था । इस नीति के परिणामस्वरूप, यदि किसी गरीब का बेटा चाहे तो वो भी तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त कर सकता था ।
तक्षशिला में कोई संरचित परीक्षा या ग्रेडिंग सिस्टम नहीं थे। शिक्षक तय करेगा कि
छात्र की शिक्षा कब खत्म होगी । शिक्षा के अंत में सिर्फ गुरु दक्षिणा स्वीकार की
जाती थी ।
केवल ग्रेजुएशन की पढाई
तक्षशिला
बड़े पैमाने पर ग्रेजुएशन की पढाई का केंद्र था। तक्षशिला में भर्ती होने से पहले छात्रों
को अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा कहीं और पूरी करनी होती थी और उन्हें
तक्षशिला में भर्ती होने के लिए कम से कम 16 वर्ष । केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि चीन,ग्रीस और अरब जैसे आस-पास के
देशों के छात्र भी सीखने के इस शहर में आते थे।
सीखो जो
आप चाहते हो
तक्षशिला
में,आप अपनी इच्छानुसार लगभग किसी भी
विषय का अध्ययन कर सकते थे - चाहे वह चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कानून, शिकार, भाषा, संगीत, ज्योतिष, दर्शन या तीरंदाजी हो कुल मिलाके 68 विभिन्न विषयोंका ज्ञान छात्र प्राप्त कर सकते थे ।
तक्षशिला के प्रसिद्ध छात्र
चाणक्य –
शायद ही कोई ऐसा होगा जो चाणक्य को नहीं जनता होगा I चाणक्य राजनीती शास्त्र के
महान ज्ञाता और चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु थे और सलाहकार भी – चरक- जो की एक अर्थशास्त्री थे, चन्द्रगुप्त
मौर्य जो की अखंड भारतके सम्राट थे , संस्कृत भाषा के महान योगदानकर्ता - पाणिनि; ये सभी तक्षशिला से जुड़े हैं। इस प्रकार उन दिनों में तक्षशिला को ऐसी स्थिति और
प्रतिष्ठा प्राप्त थी, कि आधुनिक विश्वविद्यालय आज केवल
स्वप्न देखते हैं।
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