अष्ठविनायक मंदिर : गणपति के ऐसे 8 मंदिर, जहां खुद प्रकट हुई उनकी प्रतिमा
अष्ठविनायक मंदिर के संबंध में मान्यता है कि तीर्थ गणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं। धार्मिक नियमों से तीर्थयात्रा शुरू की जानी चाहिए। यात्रा निकट मोरगांव से शुरू कर और वहीं समाप्त होनी चाहिए। पूरी यात्रा 654 किलोमीटर की होती है।
ये हैं वो आठ मंदिर...
1.मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर
मयूरेश्वर विनायक का मंदिर पुणे के मोरगांव क्षेत्र में है। पुणे से करीब 80 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार भी हैं जिन्हें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग चारों युग का प्रतीक मानते हैं। यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उसकी सूंड बाई है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। यहां नंदी की भी मूर्ती है। कहते हैं कि इसी स्थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर उससे युद्ध करते हुए किया था। इसी कारण उनको मयूरेश्वर कहा जाता है।
3. बल्लालेश्वर मंदिर
पाली गांव, रायगढ़ में इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है। बल्लाल की कथा के बारे में कहते हैं कि इस परम भक्त को उसके परिवार ने गणेश जी की भक्ति के चलते उनकी मूर्ती सहित जंगल में फेंक दिया था। जहां उसने केवल गणपति का स्मरण करते हुए समय बिता दिया था। इससे प्रसन्न गणेश जी ने उसे इस स्थान पर दर्शन दिया और कालानंतर में बललाल के नाम पर उनका ये मंदिर बना। ये मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है।
रायगढ़ के कोल्हापुर में वरदविनायक मंदिर। एक मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा होने का वरदान देते हैं। एक कथा ये भी है कि इस मंदिर में नंददीप नाम का दीपक है जो कई वर्षों से लगातार जल रहा है।
तीन नदियों भीम, मुला और मुथा के संगम पर स्थित थेऊर गांव में स्थित है चिंतामणी मंदिर। ऐसी मान्यता है कि विचलित मन के साथ इस मंदिर में जाने वालों की सारी उलझन दूर हो कर उन्हें शांति मिल जाती है। इस मंदिर से भी जुड़ी एक कथा है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को शांत करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।
लेण्याद्री गांव में गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर स्थित है। जिसका अर्थ है गिरिजा के आत्मज यानी माता पार्वती के पुत्र अर्थात गणेश। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसे लेण्याद्री पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। इस पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं जिसमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। एक अौर विशेषता ये है कि यह पूरा मंदिर एक ही बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।
पुणे के ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है। पुणे-नासिक रोड पर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर ये मंदिर बना है। एक किंवदंती के अनुसार विघनासुर नाम का असुर जब संतों को प्रताणित कर रहा था, तब भगवान गणेश ने इसी स्थान पर उसका वध किया था। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।
महागणपति मंदिर राजणगांव में स्थित है । इस मंदिर को 9-10वीं सदी के बीच का माना जाता है। पूर्व दिशा की ओर मंदिर का बहुत विशाल और सुन्दर प्रवेश द्वार है। यहां गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करने के लिए इस मंदिर की मूल मूर्ति को तहखाने में छिपा दिया गया है।
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